नमामि शमीशान निर्वाण रूपं अर्थ सहित व्याख्या
श्लोक
नमामि शमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥
अर्थ:
मैं उन भगवान शिव को नमन करता हूँ, जो शम (शांत) हैं, ईशान (सर्वोच्च) हैं, और निर्वाण रूप (मुक्ति स्वरूप) हैं।
वे सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और वेदों के मर्म हैं।
वे स्वयं में स्थित, निर्गुण (गुणों से परे), निर्विकल्प (द्वैत रहित), और निरीह (इच्छा-रहित) हैं।
जो चेतन रूप आकाश (चिदाकाश) हैं और आकाश को ही अपना वास मानते हैं, मैं उन शिव का भजन करता हूँ।
व्याख्या:
यह श्लोक भगवान शिव के गुणों और स्वरूप का वर्णन करता है।
- शमीशान: शिव को शांति और सौम्यता के स्वामी के रूप में संबोधित किया गया है।
- निर्वाण रूपं: वे मोक्ष प्रदान करने वाले हैं।
- विभुं व्यापकं: वे सर्वत्र व्यापक और असीम शक्ति से युक्त हैं।
- ब्रह्म वेदस्वरूपम्: वेदों में वर्णित ब्रह्म का ही स्वरूप हैं।
- निजं निर्गुणं: शिव निर्गुण हैं, अर्थात् वे किसी भी गुण या रूप से बंधे नहीं हैं।
- चिदाकाश: वे चेतन आकाश हैं, जो सभी प्राणियों की आत्मा के मूल स्रोत हैं।
यह श्लोक अद्वैत दर्शन और शिव की सर्वोच्चता का प्रतीक है। इसे श्रद्धापूर्वक जपने से मन को शांति और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।