
सुख-दु:ख अस्थायी और अनित्य है। इसलिए तुम उसको सहन करना सीखो।
दोस्तों ऊपर लिखा हुआ वाक्य भागवत गीता से लिया गया है।
इस वाक्य का अर्थ यह है कि सुख और दु:ख दोनों ही बारी-बारी से हमारे जीवन में प्रवेश करते हैं। और चले जाते हैं। जब सुख आता है तो व्यक्ति सोचता है कि सब कुछ अच्छा हो रहा है। उसको दुनिया की समस्त चीजें अच्छी लगने लगती हैं। लेकिन जब दु:ख आता है तो नकारात्मक चीजें उसको चारों तरफ से घेर लेती है। उसको कोई चीज़ अच्छा भी हो तो उसमे भी उसको बुराई दिखाई देने लगता है। वह हमेशा नकारात्मक चीजें सोचने लगता है। और अपनी समस्याओं में ही उलझा रहता है। इसलिए हे भगवान! मुझे ऐसी शक्ति दो कि मैं सुख के साथ-साथ दु:ख को भी अपने जीवन का एक हिस्सा मान कर उसे ग्रहण कर सकू और मेरे जीवन में जितने भी दु:ख के समय है या आने वाले हैं। उन सभी दु:खों का सामना करने की शक्ति मेरे अन्दर प्रदान करे।
कितना अच्छा और कितना सुंदर विचार - भगवत गीता में कहा गया है।
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2 comments
kafi achha he mere bhai
धन्यवाद! Krunal Sabhadiya.