तुलसीदास का जीवन परिचय (Tulsidas ka Jeevan Parichay)
tulsidas ka jivan parichay – तुलसीदास हिंदी साहित्य और भक्ति आंदोलन के महान कवि माने जाते हैं। इनका जन्म संवत् 1554 (1532 ई.) में उत्तर प्रदेश के राजापुर (चित्रकूट) गांव में हुआ। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था। तुलसीदास जन्म के समय असामान्य बालक थे, जिसके कारण इन्हें बचपन में माता-पिता का स्नेह नहीं मिला और इनका पालन-पोषण गुरु नारायण दास ने किया।
तुलसीदास का जीवन प्रारंभ में सांसारिक था। पत्नी रत्नावली की प्रेरणा से वे सांसारिक मोह-माया त्यागकर भक्ति मार्ग पर चले गए। उनकी भक्ति का केंद्र भगवान राम थे। काशी और चित्रकूट में उन्होंने दीर्घकाल तक साधना की। तुलसीदास का देहांत संवत् 1680 (1623 ई.) में काशी में हुआ।
तुलसीदास की रचनाएँ (Rachnayein)
तुलसीदास ने संस्कृत और अवधी भाषा में अनेक ग्रंथों की रचना की। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं:
- रामचरितमानस: तुलसीदास की सबसे प्रसिद्ध रचना है। इसमें भगवान राम की कथा को सरल अवधी भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
- विनयपत्रिका: इसमें भगवान राम के प्रति भक्त की प्रार्थना और समर्पण भावना व्यक्त की गई है।
- कवितावली: इसमें रामकथा को दोहों और चौपाइयों के माध्यम से वर्णित किया गया है।
- गीतावली: इस रचना में रामकथा को गेय रूप में प्रस्तुत किया गया है।
- दोहावली: इसमें तुलसीदास के जीवन अनुभव और शिक्षाप्रद दोहे हैं।
- कृष्णगीतावली: इसमें भगवान कृष्ण की भक्ति से संबंधित रचनाएँ हैं।
- रामलला नहछू: राम जन्मोत्सव से संबंधित लोक शैली में रचित काव्य।
तुलसीदास का भाव पक्ष (Bhav Paksh)
तुलसीदास के साहित्य का भाव पक्ष अत्यंत समृद्ध है। उनके काव्य में भक्ति, नीति, और राम की मर्यादा पुरुषोत्तम रूप की अभिव्यक्ति देखने को मिलती है।
- भक्ति भाव:
तुलसीदास की काव्य रचनाएँ भक्ति रस से ओत-प्रोत हैं। उन्होंने भगवान राम को ईश्वर, गुरु, और मित्र के रूप में देखा। उनकी भक्ति निर्गुण और सगुण दोनों का संतुलित रूप है। - मर्यादा और आदर्श:
उन्होंने भगवान राम को आदर्श पुरुष के रूप में प्रस्तुत किया, जिनका जीवन मर्यादा, धर्म और न्याय का प्रतीक है। - समाज सुधार:
तुलसीदास ने समाज में व्याप्त बुराइयों जैसे जातिवाद और धर्म के नाम पर हो रहे भेदभाव का विरोध किया। उनका संदेश था कि भक्ति में सभी समान हैं। - लोकहित और मानवता:
तुलसीदास ने लोकमंगल की भावना को अपने काव्य में स्थान दिया। उन्होंने समाज को आदर्श जीवन जीने की प्रेरणा दी।
तुलसीदास का कला पक्ष (Kala Paksh)
तुलसीदास का कला पक्ष उनकी काव्य रचना को अद्वितीय बनाता है। उनकी शैली, भाषा और अलंकार का प्रयोग उत्कृष्ट है।
- भाषा:
तुलसीदास ने अवधी और ब्रज भाषा का उपयोग किया। उनकी भाषा सरल, मधुर और प्रभावशाली है। संस्कृत के कठिन शब्दों के स्थान पर उन्होंने आम जनता की भाषा का उपयोग किया। - छंद:
तुलसीदास ने चौपाई, दोहा, सोरठा, कवित्त जैसे छंदों का कुशलता से प्रयोग किया। उनकी छंदबद्ध शैली उनकी काव्य प्रतिभा को दर्शाती है। - अलंकार:
तुलसीदास ने शब्दालंकार और अर्थालंकार का सुंदर उपयोग किया। उपमा, रूपक, अनुप्रास, और अन्य अलंकारों से उनकी कविता सजीव और प्रभावशाली बनती है। - रस:
तुलसीदास के काव्य में भक्ति रस, शांत रस, और करुण रस प्रमुख हैं। उनका भक्ति रस पाठक को ईश्वर के प्रति समर्पित करता है। - सरलता और लोकप्रियता:
तुलसीदास ने अपने काव्य को जनसाधारण के लिए सुलभ बनाया। यही कारण है कि उनका साहित्य भारत के हर कोने में लोकप्रिय है।
तुलसीदास का साहित्य में स्थान
तुलसीदास हिंदी साहित्य और भक्ति आंदोलन के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से भारतीय समाज, संस्कृति और धर्म को एक नई दिशा दी। तुलसीदास का स्थान साहित्य, भक्ति, और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में अतुलनीय है।
1. भक्ति आंदोलन में योगदान:
तुलसीदास भक्ति आंदोलन के महान कवि थे। उन्होंने राम भक्ति शाखा को नई ऊंचाई दी। उनका काव्य सगुण भक्ति का आदर्श उदाहरण है। तुलसीदास ने भगवान राम को आदर्श पुरुष के रूप में स्थापित किया और उनके चरित्र के माध्यम से लोक कल्याण और नैतिकता का संदेश दिया।
2. हिंदी साहित्य में योगदान:
तुलसीदास ने हिंदी साहित्य को सरल और प्रभावी बनाया। उनकी रचनाएँ भाषा, शैली और छंद की दृष्टि से उत्कृष्ट हैं। उन्होंने संस्कृत के कठिन और जटिल साहित्य को आम जनता की भाषा अवधी और ब्रज में सरलता से प्रस्तुत किया। उनकी कृतियाँ साहित्यिक, धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
3. लोकमंगल की भावना:
तुलसीदास ने अपने काव्य में लोकमंगल की भावना को प्रमुख स्थान दिया। उनकी रचनाएँ जीवन को आदर्श और नैतिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। “रामचरितमानस” जैसे ग्रंथ ने समाज को एकजुट करने और धर्म के वास्तविक स्वरूप को समझाने का काम किया।
4. रामचरितमानस की महत्ता:
“रामचरितमानस” को हिंदी साहित्य में वही स्थान प्राप्त है, जो संस्कृत साहित्य में वाल्मीकि की “रामायण” को। यह कृति केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं है, बल्कि भारतीय संस्कृति, समाज और दर्शन का अद्भुत चित्रण है। इसे हर वर्ग, आयु और समाज में समान रूप से सम्मान प्राप्त है।
5. तुलसीदास की रचनाओं की सार्वकालिकता:
तुलसीदास की रचनाएँ समय और स्थान की सीमा से परे हैं। उनकी शिक्षाएँ और विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उनका साहित्य मानवीय मूल्यों, भक्ति, और आदर्श जीवन का संदेश देता है, जो हर युग में मार्गदर्शक है।
6. समाज सुधारक के रूप में स्थान:
तुलसीदास ने अपने साहित्य के माध्यम से जातिवाद, भेदभाव और समाज में व्याप्त अंधविश्वासों का विरोध किया। उन्होंने सभी को यह संदेश दिया कि ईश्वर भक्ति में कोई भेदभाव नहीं है। उनकी रचनाएँ सामाजिक सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
7. भारतीय संस्कृति और धर्म का संरक्षक:
तुलसीदास ने भारतीय संस्कृति और धर्म को अपने साहित्य में सजीव रखा। उन्होंने राम के आदर्श चरित्र के माध्यम से धर्म, मर्यादा, और नैतिकता को समाज में पुनः स्थापित किया।
8. तुलसीदास का साहित्यिक मूल्य:
तुलसीदास के साहित्य में भाषा की मधुरता, छंदों की सुंदरता, और अलंकारों का कुशल प्रयोग है। उनके काव्य में रस, अलंकार और भावनाओं का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है।
9. तुलसीदास का सार्वभौमिक संदेश:
तुलसीदास का संदेश सीमित धर्म और समाज तक नहीं है, बल्कि उन्होंने संपूर्ण मानवता को धर्म, सत्य और प्रेम का संदेश दिया। उनका साहित्य आज भी नैतिक और आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत है।
10. निष्कर्ष (Conclusion):
तुलसीदास का हिंदी साहित्य में स्थान इतना उच्च है कि उन्हें “हिंदी साहित्य का सूर्य” कहा जाता है। उनकी रचनाएँ जन-जन में भक्ति, आदर्श और नैतिकता का संचार करती हैं। उनका साहित्य कालजयी है और उनकी शिक्षाएँ भारतीय संस्कृति और समाज के लिए हमेशा प्रासंगिक रहेंगी।
“रामचरितमानस” और उनकी अन्य रचनाओं ने उन्हें साहित्य और भक्ति दोनों ही क्षेत्रों में अमर कर दिया है। तुलसीदास भारतीय साहित्य के इतिहास में अमिट स्थान रखते हैं।